जानता हूँ
मुझे कोई हक़ नहीं
तुम्हारी तस्वीर को देखने का
तुम्हारे बिखरे बालों में खोने का
तुम्हारे लाल गाल
और वो आंखें
डूब जाना चाहता हूँ मैं उनमे
तुम्हारे सुर्ख होठ
खुश हो जाता हूँ तुम्हें मुस्कुराते देख
चूम लेता हूँ तुम्हारा माथा मैं
ताकि बता सकूँ
फ़िक्र होती है मुझे तुम्हारी।
याद आती हो तुम
बस यही तस्वीर तो है
गले लगाकर रोता हूँ इन्हें
चीख़ता है हृदय मेरा
पर दब जाती है
आंसुओं से लिपटी गर्म साँसों में मेरी आवाज।
याद आता है हर वो पल
जिनमें तुम हो
तुम्हारी बातें
तुम्हारे सपने
तुम्हारा दर्द
तुम्हारी हँसी
और वो गीत
अक्सर ही गुनगुनाती थी जिसे।
कभी तो आओगी
इन बन्धनों को तोड़कर
मेरे पास।
देख लेना आकर
उस वक़्त जब अंतिम साँसे चल रही होंगी मेरी
मैं फिर पुकारूंगा तुम्हें
खुली रहेंगी मेरी आँखें
तुम्हारे दीदार को
तुम्हारे इंतजार में
तुम्हारे प्यार में।
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