Friday 31 March 2017

मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये

मुझे दिल में अपने बसा लो प्रिये
मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये।

जब से जन्मा तू ही मेरे दिल में तो है
हर रूप बस मेरा तुझसे ही है
तू सुबह मेरी, तू ही शाम है
तू काम मेरा तू आराम है
कंटीले सफर में सुमन-सी तू है
गर्मी में ठंडी पवन-सी तू है
तू मेरी उपमा, तू अनुप्रास है
तू वीरता मेरी, तू हास है
मुझको शृंगार अपना बना लो प्रिये
मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये।

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ

प्रिय की यादों में खोकर
जब रोने का मन होता है
छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी प्यारी प्यारी बातों का हर क्षण मेला होता है

क्या भूलूँ क्या याद करूँ बस यही झमेला होता है

मनचाहे कामों से नफरत हो जाती है

औरों की बातें झुंझलाहट दे जाती है

मायूसी घर कर जाती है

मन जस तस बहलाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी यादों का जाल सदा चौतरफा मेरे होता है

रोम रोम मेरे तन का तड़पन में उसकी रोता है

खुशियों के रंगमंच का पर्दा गिरता है

पुस्तक की पृष्ठों में चेहरा देखता है

चीख हृदय से उठती है

गीत प्यार के गाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...