हे समाज के बुद्धिजीवियों!
बेशक कैंडल मार्च निकालो
लेकिन उससे पहले मेरी भी कुछ इच्छाएँ सुन लो।
मोमबत्तियों के जलने से पहले मन पर बल डालो
देखो रोज रोज कितनों पर तुम नजरें दौड़ाते हो
बच्ची, वृद्धा, युवती, हिन्दू, मुस्लिम, या कोई भी हो
आँखों से ही नोच नोच कर रोज उन्हें तुम खाते हो
हे समाज के बुद्धिजीवियों!
बेशक कैंडल मार्च निकालो
लेकिन उससे पहले उनके मन की ये आहें सुन लो।
थाने वाले चच्चा जी से कहो हया थोड़ी रखें
उत्तर जिनका दे न सकूँ वह ऐसे प्रश्न उछालें मत
काले कोट पहनने वाले अंकल से जाकर बोलो
पैसों ख़ातिर बात बात में मुझे नग्न कर डालें मत
हे समाज के बुद्धिजीवियों!
बेशक कैंडल मार्च निकालो
लेकिन उससे पहले तुम मेरी ये पीड़ाएँ सुन लो।
अभी यहाँ से वापस जाते ही, बोलोगे सुंदर थी
और मेरी स्कर्ट भी घुटनों से थोड़ा ऊपर ही थी
किन्तु हृदय पर हाथ रखो, मुझको सच सच यह बतलाओ
कपड़े मेरे छोटे थे, या सोच तुम्हारी छोटी थी?
हे समाज के बुद्धिजीवियों!
बेशक कैंडल मार्च निकालो
लेकिन उससे पहले मेरी प्रश्न श्रृंखलाएं सुन लो।
- महेंद्र मिश्र 'मोहित'