Saturday 28 September 2019

प्रेम-पत्र

प्रिये!
तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन में क्या परिवर्तन आये, इनके बारे में लिखना एक मुश्किल क्रिया है। कुछ-कुछ बताना हो तो यही बताऊँगा, कि अब खुश रहने का प्रयास करने लगा हूँ। इस एक साल में बहुत-सी यादें साथ जुड़ीं। तुम्हारे बगैर जीने को भी सोचा, पर मुमकिन न हो सका। तुमने कहा था न, कि तुम मेरी प्रतीक्षा में हो। बहुत भरोसा है तुम्हारी इस बात पर। भरोसा है कि वर्ष बीतेगा। भरोसा है कि वे अपेक्षित परिणाम आएंगे जिनके लिए हमने अलग होना स्वीकार किया। भरोसा है कि हम तुम मिलकर वह सब करेंगे, जिन्हें बीते एक वर्ष में हमने अवकाश पर रखा था। भरोसा है कि जब हम मिलेंगे, तो रिश्ते की पुरानी जड़ों से नई ताज़गी का एहसास समेटे एक वृक्ष उगेगा, जो पहले से अधिक हरियाली और छाया लिए होगा। मोहकता और सद्गन्ध के नए पुष्प उगेंगे जिनमें प्रेम युक्त मादकता के सुमधुर फल विकसित होंगे। फल ही तो चाहिए था न हमें, हर उस काम का, जो हम कर रहे। गीता तो तुमसे ही सीखी मैंने। तुमने कहा था कि क्या होगा वो देखा जाएगा, पर हमें क्या करना है ये अभी देखना होगा। तुम्हारी याद में जीने का एक महत्वपूर्ण काम कर रहा हूँ। फल की चिंता से मुक्त होकर जी रहा हूँ। चिंतामुक्त हो इस बात को गोविंद के अधीन कर इस आस में हूँ कि वह सब कुछ मनवांछित करेंगे। कन्हैया की लीला तो वही जानते हैं, पर आशा तो की ही जा सकती है न।
बीते एक साल में तुम्हारी ज़िंदगी मे होने वाला एक भी परिवर्तन मुझे ज्ञात नहीं। तुमने कहा था बात नहीं करेंगे, तो एक भी बार प्रयास नहीं किया। तुम्हारी बात तो माननी ही थी। तुमने जीवन में शामिल होते ही प्रेम की तरल फुहारों से युक्त एक नव पथ का सृजन आरम्भ किया था। मेरी सारथी भी तुम्हीं थीं। तुम्हें जीवन की रेखा सौंपकर निश्चिन्त था मैं। जीवन के इस अकस्मात मोड़ का अंदाजा भी न था। अब जी रहा हूँ, और तुमसे इतना तो सीख लिया है कि कैसे जीना है। एक लड़की होना एक लड़का होने से अधिक मुश्किल है। तुम्हारी इसी बात को सबसे पहले सीखा था मैंने और अब इस सीख का अनुपालन कर अपने मन की बहुत सी बातें मन के ही एक कोने में रख भाव प्रवाह को रोककर वह करने की कोशिश में रहता हूँ, जो मुझे करना चाहिए। कर्म पथ भी तो तुम्हीं से सीखा। जीवन को एक उद्देश्य दिया है तुमने। उद्देश्य पूरा होगा या नहीं, यह तो समय की परतों के हटने के बाद ही ज्ञात होगा, पर मैं तुम्हें यह विश्वास अवश्य दिला सकता हूँ कि मेरे प्रयास में कहीं से भी कोई अपूर्णता न होगी। तुमसे मिलकर पूर्णता का सही अर्थ जाना है मैंने। जहाँ तुम हो, वहीं पूर्ण हूँ मैं। तुम्हारी इच्छानुरूप ही सब कर रहा हूँ। हाँ, यह जरूर है, कि बिना तुम्हारे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। रोज की हलचल साझा करना चाहता हूँ तुम्हारे साथ। आज कहाँ गया? किससे मिला? दिन सामान्य रहा या विशेष? यह सब कुछ बता देना चाहता हूँ तुम्हें। जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ प्रत्येक पल में। बहना चाहता हूँ तुम्हारे निश्छल प्रेम की श्वेत नदी में। रहना चाहता हूँ तुम्हारी बाहों के उस महफूज घेरे में और सो जाना चाहता हूँ एक ऐसी निश्चिन्तता भरी नींद जो तुम्हारे सपनों से भी ज्यादा आराम देती हो।
मैं जानता हूँ कि तुमसे मिले बिना यह पत्र भी तुम तक नहीं पहुँचेगा, किंतु तब भी मैं लिखना चाहता हूँ। मैं लिखना चाहता हूँ हर वो भाव जिनमें तुम हो। तुमसे मिलने का पल पास आता जा रहा है, और तब तक इस पत्र को इस प्रेरणा हेतु सुरक्षित रखूँगा कि अलगाव के समय किये गए वचन निभाने ही होंगे। यह पत्र मैं फिर पढूँगा, और जब तुम मिल जाओगी, तो तुम्हें भी पढ़ाऊंगा, ताकि तुम जान सको कि इस एक साल का सार क्या रहा? यह उन तमाम लेखों, कविताओं, और डायरी के पन्नों से अलग है जिनमें तुम हो। इसे सहेज कर रखना क्योंकि यह हमारे जीवन के इतिहास का वर्तमान है।

जीवन भर के लिए मेरा प्यार...
तुम्हारे आनंदित जीवन की प्रार्थना में
तुम्हारा...मैं

Thursday 2 May 2019

जरूरत जातियों को खत्म करने की

पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति जलीय जीवों से मानी जाती है। विभिन्न धर्मों के ग्रन्थों के अनुसार सर्वप्रथम 2 मनुष्य हुए, और उन्हीं से फिर मानवों का विकास होता रहा और आज मनुष्यों की वैश्विक जनसंख्या 8 अरब पहुँच चुकी है। भारत की बात करें तो यहाँ लगभग 125 करोड़ लोग निवास करते हैं। ये लोग विभिन्न धर्मों, जातियों, उपजातियों में विभाजित हैं। मनुष्यों के विभिन्न में वर्गों में बंटवारे का पहला साक्ष्य ऋग्वेद के दसवें मंडल से मिलता है। तब से लेकर आज तक यह विभाजन बढ़ता ही गया है। महज दो मनुष्यों से शुरू हुई मानव की विकास यात्रा में सिर्फ हिंदुस्तान में ही हम आज लगभग 7500 जातियों के साथ जी रहे हैं।
वर्णों के विभाजन से वर्गों के विभाजन तक पहुँचना कुछ लोगों के लिए भले ही हितकारी रहा हो, किन्तु एक मनुष्य के रूप में हमारा नुकसान ही हुआ है। आपसी सामंजस्य और भाई चारे से हम कोसों दूर होते जा रहे हैं। भारत की वर्तमान राजनीति में कुछ दलों का तो आधार ही जातीयता है। अलग-अलग जातियों के हितों के रक्षक बनकर लोग नित नए-नए राजनैतिक दल बना दे रहे हैं। बहुत से गैर राजनीतिक संगठन भी इस बाबत तीव्रता से काम कर रहे हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, व हरिजन को आधार बनाकर न जाने कितने संगठन आज काम कर रहे हैं। जातीय वैमनष्यता को बढ़ावा देकर अपना उल्लू सीधा करना इन सबका प्रमुख उद्देश्य रहा है।
संविधान लागू होने के साथ ही शुरू हुई आरक्षण की व्यवस्था ने भी इस दूरी को बढाने का ही काम किया है। इससे एक वर्ग एक वोट बैंक में बंटकर रह गया है, और आरक्षण की नीति में कोई बदलाव करके कोई भी राजनैतिक दल अपने वोट बैंक को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। इसी के चलते आज हम एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं, जहाँ व्यक्ति के काम, विचार, और योग्यता से ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी जाति हो गयी है। बीते कुछ वर्षों में जातियों से जुड़े हुए हिंसक आंदोलन भी खूब देखने को मिले हैं। इन हिंसक आंदोलनों के अतिरिक्त अलग-अलग जातियों के नेताओं की मूर्तियों को तोड़ने का क्रम भी जारी रहा है।
ऐसे में हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि हम इस आपसी भेदभाव को कैसे दूर कर सकते हैं। हमें जरूरत है एक ऐसे परिवेश का निर्माण करने की जहाँ जातियों से सम्बंधित कोई भी भेदभाव न रहे। किसी व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए गलत व्यवहार न हो, कि वह किसी और जाति का है।
देश का संविधान भी "एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए" संकल्पित है, और इसी संविधान को हमने "अधिनियमित, आत्मार्पित और अंगीकृत" किया है। संविधान के इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु आज आवश्यकता आ पड़ी है कि सरकार संसद में जाति निषेध बिल लेकर आये, और देश से जातियों को पूरी तरह समाप्त कर दे। हर व्यक्ति के साथ उसके विचारों, और प्रतिभा के अनुरूप व्यवहार किया जाए, न कि उसकी जाति के अनुरूप। इस बिल के जरिये यह सुनिश्चित किया जाए कि देश में समस्त जाति आधारित संगठन, व नीतियाँ बन्द हों, व देश को एक इकाई मानते हुए सभी के साथ समान व्यवहार हो। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो, कि हमारी पहचान केवल और केवल भारतीय होने की हो, न कि किसी जाति के व्यक्ति के रूप में।
इस देश को एकता के सूत्र में पिरोने की मंशा को मूर्त रूप तभी दिया जा सकेगा, जब इस देश से जातियों का निषेध हो सकेगा।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...