Saturday 28 April 2018

कैसे प्यास बुझाऊँ मैं ?

पनघट पनघट काँटे बिखरे
कैसे प्यास बुझाऊँ में ?

जहाँ कहीं मैं नजर घुमाता
गूँगे, अंधे, बहरे दिखते
काली करतूतें, जुबान,दिल
कालिख पोते चेहरे दिखते

काली सड़कों-सन्नाटों में
कैसे मंजिल पाऊँ मैं ?

कलरव, सूनेपन में बदला
सूरज आज नहीं जागा
सिंहासन ने मौन धरा पर
मन का पाप नहीं भागा

उपवासी मुद्रा लालचमय
कैसे खुशी मनाऊँ मैं ?

मंदिर के परिसर में देखो
गौरैया के पंख कट रहे
उन्हें बचाए कौन यहाँ तो
आपस मे इंसान बँट रहे

लुटती मर्यादा भारत की
कैसे चुप हो जाऊँ मैं ?

Tuesday 10 April 2018

ग़ज़ब नीति है

ग़ज़ब नीति है
प्रतिभावानों के पग, पल पल काटे जाते हैं।

जिसकी सबसे गहरी जड़ है
सबसे सीधा जिसका तन
फलदायी जो सबसे ज्यादा
पत्तों में है चिकनापन
ग़ज़ब नीति है
हरे भरे जो पेड़ यहाँ वो काटे जाते हैं।

रोज उपद्रव करने वालों
के हाथों सिंहासन है
कौन यहाँ कब क्या कर डाले
हर चेहरा दुःशासन है
ग़ज़ब नीति है
बच्चे नित खानों खानों में बाँटे जाते हैं।

अवसर वाली सभी कुंजियाँ
दूर्योधन की ओर पड़ीं
सद्भावों की जो बातें हैं
विदुर बनी उस छोर खड़ीं
ग़ज़ब नीति है
कोलाहल की रक्षा में सन्नाटे जाते हैं।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...