मेरे अंतिम दिन निकट हैं
जल्द ही चल पड़ूँगा
परम धाम को।
एक कष्ट मुझे वहाँ भी सताएगा
और वो ये है
कि मुझे चार कंधों पर लादकर
न तो किसी ने मुझे अग्नि को सौंपा
न ही किसी ने मिट्टी दी।
इतना होने पर भी
मैं चाहता हूँ कि फिर आऊँ
मैं उस परमशक्ति से याचना करूँगा
पुनर्जन्म की।
मेरी चाहत है कि इस संसार मे विद्यमान रहूँ
और संसार मुझे ही नष्ट करने में जुटा है।
हर तरफ से मेरे शरीर पर प्रहार हो रहा है
कभी भूखे को नजरअंदाज करने पर
तो कभी पर स्त्री पर नजरें डालने पर।
आज तो हृदयाघात होते होते बचा
वो बस अपने पिता को मारने वाला था
पर रुक गया
क्योंकि उसका मोबाइल बज उठा था।
पर कब तक बचता रहूँगा
ऐसे हालात में
जब कोई रखना ही नहीं चाहता मुझे।
मैं ही तो जबरदस्ती गले पड़ना चाहता हूँ सबके
और जबरदस्ती कब तक बन्धा रहूँगा।
घायल और दुर्बल
बूढ़ा और असहाय
पड़ा रहता हूँ दुबककर
बस कभी कभी आ जाता हूँ
पैसे न कमाती हुई माँ से मिलने
लालच रहित कवि के पास
और छोटे बच्चों के साथ मुलाकात करने।
पर ये भी कब तक रखेंगे
माँ कब तक पैसे नहीं कमाएगी
मंच और प्रसिद्धि की लालच कवि के पास आ जायेगी
और बच्चे बड़े भी तो हो जाएंगे।
मुझे संघर्ष पसन्द है
इसलिए अब तक जीवित हूँ
पर जानता हूँ
मेरे अंतिम दिन निकट हैं।