Thursday 5 October 2017

मुक्तक

हृदय में प्यार जिससे है मेरी वो भावना तुम हो
जिसे हर क्षण निहारूँ मैं मेरी वो कल्पना तुम हो
मेरी रग रग में तुम ही हो मेरी धड़कन भी तुम से है
तुम्हीं आराध्य हो मेरे मेरी आराधना तुम हो
तेरी पावन छवि देखो मेरी आँखों मे छाई है
तुम्हीं संग लौट कर खुशबू मेरी साँसों में आई है
तेरे प्यारे से मुखड़े से को चूमकर आज तो देखो
चाँदनी पूर्णिमा की फिर मेरी बाहों में आई है
करूँ मैं ईष्ट का सुमिरन समय ये वंदना का है
माँग लूँ मैं तेरी खुशियाँ समय ये अर्चना का है
मेरा तो प्रेम ही ईश्वर, यही काशी यही मथुरा
बनूँ साधक मोहब्बत का समय ये साधना का है

सभी अर्पित करे बिन प्रेम का दरिया ये रीता है
समर्पण कर दो अपने प्राण तब ही प्रेम जीता है
हमारी प्रीति में आकर जो तुमने गीत गाये थे
मेरी श्रद्धा उसी में है वो रामायण है गीता है
        
                                     -मोहित

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...