Thursday 2 May 2019

जरूरत जातियों को खत्म करने की

पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति जलीय जीवों से मानी जाती है। विभिन्न धर्मों के ग्रन्थों के अनुसार सर्वप्रथम 2 मनुष्य हुए, और उन्हीं से फिर मानवों का विकास होता रहा और आज मनुष्यों की वैश्विक जनसंख्या 8 अरब पहुँच चुकी है। भारत की बात करें तो यहाँ लगभग 125 करोड़ लोग निवास करते हैं। ये लोग विभिन्न धर्मों, जातियों, उपजातियों में विभाजित हैं। मनुष्यों के विभिन्न में वर्गों में बंटवारे का पहला साक्ष्य ऋग्वेद के दसवें मंडल से मिलता है। तब से लेकर आज तक यह विभाजन बढ़ता ही गया है। महज दो मनुष्यों से शुरू हुई मानव की विकास यात्रा में सिर्फ हिंदुस्तान में ही हम आज लगभग 7500 जातियों के साथ जी रहे हैं।
वर्णों के विभाजन से वर्गों के विभाजन तक पहुँचना कुछ लोगों के लिए भले ही हितकारी रहा हो, किन्तु एक मनुष्य के रूप में हमारा नुकसान ही हुआ है। आपसी सामंजस्य और भाई चारे से हम कोसों दूर होते जा रहे हैं। भारत की वर्तमान राजनीति में कुछ दलों का तो आधार ही जातीयता है। अलग-अलग जातियों के हितों के रक्षक बनकर लोग नित नए-नए राजनैतिक दल बना दे रहे हैं। बहुत से गैर राजनीतिक संगठन भी इस बाबत तीव्रता से काम कर रहे हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, व हरिजन को आधार बनाकर न जाने कितने संगठन आज काम कर रहे हैं। जातीय वैमनष्यता को बढ़ावा देकर अपना उल्लू सीधा करना इन सबका प्रमुख उद्देश्य रहा है।
संविधान लागू होने के साथ ही शुरू हुई आरक्षण की व्यवस्था ने भी इस दूरी को बढाने का ही काम किया है। इससे एक वर्ग एक वोट बैंक में बंटकर रह गया है, और आरक्षण की नीति में कोई बदलाव करके कोई भी राजनैतिक दल अपने वोट बैंक को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। इसी के चलते आज हम एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं, जहाँ व्यक्ति के काम, विचार, और योग्यता से ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी जाति हो गयी है। बीते कुछ वर्षों में जातियों से जुड़े हुए हिंसक आंदोलन भी खूब देखने को मिले हैं। इन हिंसक आंदोलनों के अतिरिक्त अलग-अलग जातियों के नेताओं की मूर्तियों को तोड़ने का क्रम भी जारी रहा है।
ऐसे में हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि हम इस आपसी भेदभाव को कैसे दूर कर सकते हैं। हमें जरूरत है एक ऐसे परिवेश का निर्माण करने की जहाँ जातियों से सम्बंधित कोई भी भेदभाव न रहे। किसी व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए गलत व्यवहार न हो, कि वह किसी और जाति का है।
देश का संविधान भी "एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए" संकल्पित है, और इसी संविधान को हमने "अधिनियमित, आत्मार्पित और अंगीकृत" किया है। संविधान के इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु आज आवश्यकता आ पड़ी है कि सरकार संसद में जाति निषेध बिल लेकर आये, और देश से जातियों को पूरी तरह समाप्त कर दे। हर व्यक्ति के साथ उसके विचारों, और प्रतिभा के अनुरूप व्यवहार किया जाए, न कि उसकी जाति के अनुरूप। इस बिल के जरिये यह सुनिश्चित किया जाए कि देश में समस्त जाति आधारित संगठन, व नीतियाँ बन्द हों, व देश को एक इकाई मानते हुए सभी के साथ समान व्यवहार हो। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो, कि हमारी पहचान केवल और केवल भारतीय होने की हो, न कि किसी जाति के व्यक्ति के रूप में।
इस देश को एकता के सूत्र में पिरोने की मंशा को मूर्त रूप तभी दिया जा सकेगा, जब इस देश से जातियों का निषेध हो सकेगा।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...