Saturday 27 May 2017

बस प्यार करो

जिसे देखकर अधर हमारे अनायास खुल जाते हैं
जिसकी खुशबू पाकर हम तो यूँ ही पगला जाते हैं
एक पंखुड़ी जिसकी मन को अद्भुत शांति दे जाती है
जिसपर सम्मोहित हो दुनिया निर्मल मन की हो जाती है

लेता न तनिक भी हमसे कुछ वो बस हमको ही देता है
उसको धूल मिलाकर मानव अपनी जय जय करता है
हाँ! वह दुर्बल है, कमजोर है, किन्तु बहुत ही अच्छा है
बस वो तेरा प्रेमी है प्यार उसी का सच्चा है

गर सचमुच के तुम मानव हो लालच को अस्वीकार करो
सर्वस्व लुटा दो जगती पर पूरी दुनिया से प्यार करो
यदि पढ़ना है तो पढो पुष्प से जो तेरी ख़ातिर जीता है
तुम पर सब न्यौछावर करता बिन तेरे बिलकुल रीता है

कटुता न देती तनिक चैन इसको मत अंगीकार करो
जीना है तो घुलमिल के जियो, बस प्यार करो बस प्यार करो।

Wednesday 24 May 2017

ग़ज़ल (तुम जो छत पे)

तुम जो छत पे चढ़ के आयी,रात उजली हो गयी,
इक फलक पे चाँद दो-दो हाय तौबा मच गयी।

श्रृंगार सारे चल पड़े, चेहरा तुम्हारा देखने,
और रति ने भी शरम से मौन साधा, छुप गयी।

जिसने भी देखा तुम्हें, बस देखता ही रह गया
पलकें झपकना भूल कर सबकी निगाहें थम गयी।

इक तमन्ना ही बची मोहित तुम्हारे दिल में अब
देखे तुम्हारे ख्वाब वो भी, आँखों में जो बस गयी।

Tuesday 23 May 2017

गीत प्यार के गाते हैं

अपनी पीड़ा गान बनाकर
         मुश्किल को आसान बनाकर
                  आँसू को मुस्कान बनाकर
                            हँसते और हँसाते हैं।
गीत प्यार के..............................गाते हैं।

मुझ तक जो कुछ भी पहुँचा वो मैंने सदा लुटाया,
जितना संभव हो सकता था, मैंने प्रेम जताया,
मन में अमिट विश्वास बनाकर
         अपने रुदन को हास बनाकर
                   रोज नया इतिहास बनाकर
                                 आगे बढ़ते जाते हैं।
गीत प्यार के..............................गाते हैं।

जब जी आया खेला, सोया, गाया और बतियाया,
किस्मत में सब अच्छा ही है, क्या खोया-क्या पाया?
साँसों को नवगान बनाकर
           गिरने को उत्थान बनाकर
                   'पत्थर' को 'भगवान' बनाकर
                                  सदा पूजते जाते हैं।
गीत प्यार के...............................गाते हैं।

Saturday 13 May 2017

ग़ज़ल (बातों को मेरी)

बातों को मेरी तू सुनना सम्भल के
आँखों को मेरी तू पढ़ना सम्भल के।

चोरों का सरदार लश्कर से बोला
कहीं खुल न जाये, तू ढंकना सम्भल के।

हरण चीर करने को बैठा दुशाशन
कहीं लुट न जाये, तू चलना सम्भल के।

मैं निकला जो घर से तो अम्मा ये बोली
कहीं ठग न जाये, तू रहना सम्भल के।

दुनिया में नज़रें बहुत सी हैं मोहित
कहीं लग न जाये, तू हंसना सम्भल के।

Thursday 11 May 2017

ग़ज़ल (रचता हूँ मैं ग़ज़ल)

रचता हूँ मैं ग़ज़ल तेरी मुस्कान पर
साथ बीती है जो उस हंसीं शाम पर।

जो किनारों से उठती हैं माँ यमुना के
कान्हा के बांसुरी की मधुर तान पर।

मन में झंकार उठती है सुनकर जिन्हें
तेरे गाये हुए प्यार के गान पर।

जो बने साक्ष्य अपनी मुलाकात के
पनघटों पर बने प्यार के धाम पर।

Saturday 6 May 2017

गोरी हमसे प्यार कर लो

ज़रा-सा आँखें चार कर लो
गोरी हमसे प्यार कर लो।

हर डाली से फूल चुना है
प्यार की माला रोज बुना है
राह तुम्हारी तकते तकते
प्यार बढ़ा ये कई गुना है
रहोगी मेरी पलकों पर तुम
ओ गोरी ऐतबार कर लो।

जाने कब से राह तकी है
हर पल मन में आस उठी है
प्रिये तुम्हारे इंतजार में
आँखें हज़ारों रात जगी हैं
अब आई हो अगर सामने
संग जीवन का सार कर लो।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...