रचता हूँ मैं ग़ज़ल तेरी मुस्कान पर
साथ बीती है जो उस हंसीं शाम पर।
जो किनारों से उठती हैं माँ यमुना के
कान्हा के बांसुरी की मधुर तान पर।
मन में झंकार उठती है सुनकर जिन्हें
तेरे गाये हुए प्यार के गान पर।
जो बने साक्ष्य अपनी मुलाकात के
पनघटों पर बने प्यार के धाम पर।
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