Wednesday 24 May 2017

ग़ज़ल (तुम जो छत पे)

तुम जो छत पे चढ़ के आयी,रात उजली हो गयी,
इक फलक पे चाँद दो-दो हाय तौबा मच गयी।

श्रृंगार सारे चल पड़े, चेहरा तुम्हारा देखने,
और रति ने भी शरम से मौन साधा, छुप गयी।

जिसने भी देखा तुम्हें, बस देखता ही रह गया
पलकें झपकना भूल कर सबकी निगाहें थम गयी।

इक तमन्ना ही बची मोहित तुम्हारे दिल में अब
देखे तुम्हारे ख्वाब वो भी, आँखों में जो बस गयी।

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