Saturday 23 December 2017

23 दिसंबर

आज 23 दिसंबर है। ठीक 2 वर्ष पहले कुछ ऐसा हुआ जिससे ये दिन अविष्मरणीय बन गया। हुआ दरअसल ऐसा.......

"मुझे आज सुबह से काफी स्पेशल फील हो रहा था" उत्साह में आते हुए उसने कहा।
जवाब में मैं बस मुस्कुरा दिया।
उस दिन वो बस बोलती ही जा रही थी। "आर्यन ये", "आर्यन वो" लगातार उसने काफी कुछ कह दिया। मैं बस उसकी खुशियों को देख रहा था। जवाब में कभी कभी "हाँ", "अच्छा", "ठीक है" और एक मुस्कान। मैं बस उसको सुनना चाह रहा था। मुझे पता था कि बहुत सी बातें होंगी उसके पास मुझसे कहने के लिए।
29 अगस्त के बाद आज वो मुझसे मिल रही थी।
इस लंबे अंतराल में काफी बदलाव आ गए थे उसके जीवन में। वो चश्मा भी लगाने लगी थी।
फेसबुक पर अचानक से हुई हमारी मुलाकात दोस्ती में बदली। फिर नम्बरों का आदान प्रदान हुआ और बातें फ़ोन पर आ गईं। मैंने कभी उसका चेहरा नहीं देखा था, और फ़ोटो भी नहीं। मैंने कभी उसको फ़ोटो भेजने को नहीं कहा  जिससे कि उसे असहज न महसूस हो। उससे बातें करना मेरी दिनचर्या का प्रमुख अंग बन गया था। जिस दिन उससे कम बातें होतीं, अधूरा अधूरा से लगता। दिनचर्या में शामिल होने के बाद धीरे धीरे वो मेरे दिल में जगह बनाने लगी। उसके विचारों से प्रेम हो गया था मुझे। वो खुले विचारों की लड़की थी, जो समाज के लिए कुछ करना चाहती थी।
एक दिन मैंने उससे अपने प्रेम का इजहार कर दिया। जवाब में उसने जो कहा वह अद्भुत था और उसने मुझमें अनंत खुशियों का संचार किया। उसने कहा था "आर्यन अगर तुम मुझे आज ये शब्द न बोलते तो शायद मैं बोल देती"।
उस दिन के बाद से हम दोनों में खूब बातें होतीं।
यूँ लगता जैसे किसी ने हमें खुशियों के समुंदर में लाकर छोड़ दिया हो। दिन बीतने लगे।
कहते हैं, कि समय मोड़ लेता है। मेरा एक मैसेज पढ़ते ही उसके पिताजी मुझसे आग बबूला हो गए। गनीमत रही, कि मैं उनके सामने न था। वरना मैं होता ही न।
उसी दिन से हमारी बातचीत बन्द हो गयी थी। हमें एक दूसरे का कुछ पता न था। उसने फेसबुक चलाना बन्द कर दिया था और मैं भी सोशल साइट्स पर बहुत कम सक्रिय रहता था। उसके पिता जी ने उसका फ़ोन नम्बर भी चेंज करवा दिया।
मुझे उसके स्कूल का पता था और उस दिन न जाने क्या हुआ, कि मैं उसके स्कूल की तरफ चल पड़ा।
मैं उत्साह में था पर डर भी रहा था, कि वो मुझे पहचानेगी या नहीं? वो अब भी मुझसे प्यार करती है नहीं?
वो अब भी वहाँ पढ़ती है, या कहीं और?
इन तमाम सवालों को सोचते हुए मैंने उसके स्कूल में प्रवेश किया। मैं उसके क्लास में चल गया, छुट्टी हो चुकी थी, और बच्चे एक पंक्ति में बाहर आ रहे थे। एक लड़की को देखा, तो मेरे दिल ने कहा कि हो न हो, ये स्नेहा ही है। मैंने तभी किसी को उसे बुलाते हुए सुना। सच, ये स्नेहा ही थी।
स्नेहा, माथे पर चंदन, आंखों में चश्मा, होठों पर हल्की सी मुस्कान। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बीते हुए लम्हे को याद कर रही हो।
मैं उसके सामने गया और वो एकदम से चौंक गयी। उसका चेहरा उत्तेजना में लाल हो गया। हम दोनों की आँखों में आँसू की नन्हीं बूँदे घिर आईं।
आज हम दोनों एक दूसरे को प्रथम बार देख रहे थे।
हमने अपने मन में जिन सपनों के बीज बोए थे, अब लग रहा था कि वो पूरे हो जाएंगे। ये प्रथम मिलन, बस प्रथम मिलन ही नहीं था, इसमें सपनों को उगाने की क्षमता थी।
इसमें हम दोनों में भीतर से खुशियों और उत्साह का संचार किया था।
ये प्रथम मिलन इस बात का प्रमाण था, कि इंटरनेट पर बने रिश्तों में भी प्रेम होता है।
ये इस बात का प्रमाण था, कि समस्याएं कितनी भी हों, सपने देखे भी जा सकते हैं, और उनके पूरे होने की उम्मीद भी की जा सकती है।
मुझे ये दिन इसलिए नहीं याद, कि इस दिन मैं प्रथम बार स्नेहा से मिला, बल्कि मुझे उन तमाम पूर्वाग्रहों के टूटने के लिए याद है, जो मानते हैं, कि कुछ पल साथ न रहने से लड़कियाँ दूसरी ओर आकर्षित हो जाती हैं। ये इसलिए अविष्मरणीय है, क्योंकि इस दिन वो तमाम लोग झूठे साबित हुए जो मानते हैं, कि किशोरावस्था के रिश्ते महज शारीरिक आकर्षण होते हैं। और हमने ये सिद्ध किया था।
 
   
                                    -मोहित

जीवन तुम संग

तुम बिना कैसे जीवन गुजारूँगा मैं
लौट आओ प्रिये दूर जाओ न तुम।
था ये वादा कि हम साथ होंगे सदा
मान रख लो ये वादा भुलाओ न तुम।
 
फूल की वाटिका जैसी सद्गन्ध में
हो सनी जैसे राघव की सीता हो तुम
हो कि यमुना किनारे की वृषभानुजा
गीत वंशी मेरी, मेरी गीता हो तुम
द्वार अपने हृदय का प्रिये खोल दो
सुन लो अर्ज़ी मेरी यूँ सताओ न तुम।

रूप देखूँ तुम्हारा तो होवे सुबह
और केशों के साये में ही रात हो
ऐसी चंचल हो तुम जैसे दीपक की लौ
और कोमल छुअन जैसे जलजात हो
मेरी खुशियाँ तुम्हारी ही मुस्कान है
रो रहा हूँ कि यूँ रूठ जाओ न तुम।
           (महेंद्र कुमार मिश्र 'मोहित')

Sunday 17 December 2017

ग़ज़ल

गाना गाते घूम रहे हैं
गाल बजाते घूम रहे हैं।

उनको भी फिर रोना होगा
अभी रुलाते घूम रहे हैं।

मुझको ज़हर पिलाने वाले
मौज मनाते घूम रहे हैं।

झूठ छिपा न पाये आखिर
बात बनाते घूम रहे हैं।

छीन लिया मेरी खुशियों को
खुद बलखाते घूम रहे हैं।

खुद उठ जाने के लालच में
मुझे गिराते घूम रहै हैं।

'मोहित' सीधी बात न कहते
मिसरा गाते घूम रहे हैं।

           

Wednesday 29 November 2017

ग़ज़ल (भूख)

खून चूस जनता का डाला फिर भी चैन नहीं तुमको
दाल और रोटी पर ताला फिर भी चैन नहीं तुमको।

एक बूँद जल को वो रोया भटका रोज दिवा निशि में
पी तुमने अंग्रेज़ी प्याला फिर भी चैन नहीं तुमको।

भूख भूख करती थी लाडो फिर चीखी बस प्राण गए
धूम धाम तुमने कर डाला फिर भी चैन नहीं तुमको।

राम राम करते हो नेता पर छूरी भर दी घर घर
पोत दिया उन पर भी काला फिर भी चैन नहीं तुमको।

आँख देख कर आया हूँ मैं जनता खूब सिसकती है
और मजे में तुम हो लाला फिर भी चैन नहीं तुमको।

खूब ग़ज़ब करते हो बातें शक की चांस नहीं रहती
बोल बोल कर देश खंगाला फिर भी चैन नहीं तुमको।

Sunday 12 November 2017

गंगा

गंगा
नदी नहीं है
जीवन है
और उसमें बहता जल
जल नहीं प्रेम है।
निकलती है गंगा
उछल कूद करती हुई
इधर से उधर दौड़ लगाती हुई
अपने बालपन में।
जैसे जैसे उम्र बढ़ती है
लोगों से परिचय बढ़ता है
लोग मिलने लगते हैं उसे।
एक दिन यूँ ही
यमुना ने अपना प्रेम न्योछावर कर दिया उसपर।
तबसे गंगा अकेली नहीं है
संग संग यमुना भी चलती है
पर देखो तो
कितना गहरा प्रेम है
यमुना ने समर्पित कर दिया अपना रूप रंग गंगा को
प्रेम की पराकाष्ठा।
तमाम मोड़ आते हैं गंगा के जीवन में
मुश्किलों में भी रास्ता बनाते हुए
विसर्प लेते हुए
अपने प्रौढ़ा अवस्था में पहुँचती है।
उसके सपने, उसके अपने
उसे तोड़ देते हैं
बिखर जाती है
कई धाराओं में
और अंततः
अपना कमाया हुआ
इकट्ठा किया हुआ
सब कुछ छोड़
विलीन हो जाती
चिर निद्रा में
शांति में।
हाँ!
गंगा नदी नहीं जीवन है।

Thursday 5 October 2017

मुक्तक

हृदय में प्यार जिससे है मेरी वो भावना तुम हो
जिसे हर क्षण निहारूँ मैं मेरी वो कल्पना तुम हो
मेरी रग रग में तुम ही हो मेरी धड़कन भी तुम से है
तुम्हीं आराध्य हो मेरे मेरी आराधना तुम हो
तेरी पावन छवि देखो मेरी आँखों मे छाई है
तुम्हीं संग लौट कर खुशबू मेरी साँसों में आई है
तेरे प्यारे से मुखड़े से को चूमकर आज तो देखो
चाँदनी पूर्णिमा की फिर मेरी बाहों में आई है
करूँ मैं ईष्ट का सुमिरन समय ये वंदना का है
माँग लूँ मैं तेरी खुशियाँ समय ये अर्चना का है
मेरा तो प्रेम ही ईश्वर, यही काशी यही मथुरा
बनूँ साधक मोहब्बत का समय ये साधना का है

सभी अर्पित करे बिन प्रेम का दरिया ये रीता है
समर्पण कर दो अपने प्राण तब ही प्रेम जीता है
हमारी प्रीति में आकर जो तुमने गीत गाये थे
मेरी श्रद्धा उसी में है वो रामायण है गीता है
        
                                     -मोहित

Thursday 17 August 2017

तुम आओ न

" तुम आओ न"

लगे घृणित वे सब कुछ मुझको, जो अब तक थे मनभावन
सूनी सूनी लगे डगर ये, सूना सूना सावन
प्रीति राह में फिर पायल झनकाओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

जानी पहचानी चीजें भी अब लगती अनजानी
ललचाकर मुझको, मिलने में करती आनाकानी
आकर इनसे परिचय मेरा कराओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं तुम आओ न।

बूंदे मन को तृप्त न करती, उल्टे प्यास बढ़ाये
नहर किनारा सूख गया है, फूल सभी मुरझाए
फूलों में फिर से खुशबू दे जाओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

सुबह सुबह वो सैर पे जाना, मेरे मन न भाए
खिड़की से तेरी जब तक कोई पैगाम न आये
आकर अपना दर्शन मुझे कराओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

तुमको मैंने पूजा, तुमको दिल में सदा सजाया
शब्द शब्द तुम से जोड़े हैं, तुमपर गीत रचाया
इन गीतों को अपने कण्ठ सजाओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

जब सम्मुख तुम थी, तो सब कुछ अजब ग़ज़ब होता था
बिनमतलब के शाम के चक्कर, का मतलब होता था
शामों को फिर से मतलब दे जाओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

सभी समस्याएं तब अपनी, झट से हल होती थीं
मेल नयन का होता जब, दिल मे हलचल होती थी
नैनाचार करो, हलचल फैलाओ न, तुम आओ न
देख रहा हूँ राह तुम्हारी कब से मैं, तुम आओ न।

                      -मोहित मिश्र

          

Monday 19 June 2017

ग़ज़ल (व्यक्ति में अभिव्यक्ति)

व्यक्ति में अभिव्यक्ति होनी चाहिए
हर किसी में शक्ति होनी चाहिए।

खेल जाएँ जान पर इसके लिए
भारती की भक्ति होनी चाहिए।

पुण्य कर्मो में सदा हम रत रहें
पाप से तो मुक्ति होनी चाहिए।

हो न हिन्दू या कि मुस्लिम हम सभी
एकता की शक्ति होनी चाहिए।

जो कि अमृत पान हो मनु के लिए
वेद सी हर पंक्ति होनी चाहिए।

Friday 2 June 2017

प्यार के बीज बोने चला हूँ (ग़ज़ल)

सब लुटाकर मिला जो भी मुझको आपका आज होने चला हूँ
गीत गाकर हृदय में सभी के प्रेम का बीज बोने चला हूँ।

तू गया जबसे बेचैन हूँ मैं अब्र आँखों में मेरी बसे हैं
तेरी यादों को सिरहाने रखकर आज तकिये भिगोने चला हूँ।

गीत-संगीत, कविता-ग़ज़ल और चूड़ियों की खनक वो निराली
चाँद की वो चमक, पायलों की झनक अब सभी को मैं खोने चला हूँ।

दिल धड़कता था तकता तुझे जब अब इसे सांस आती नहीं है
बिन तेरे है नहीं कुछ ये जीवन अब सदा को मैं सोने चला हूँ

मैं न शायर न ये शायरी है लफ्ज़ सारे हकीकत हैं मेरे
ज़िन्दगी की कहानी सुनाकर अब रुलाने औ' रोने चला हूँ।

Saturday 27 May 2017

बस प्यार करो

जिसे देखकर अधर हमारे अनायास खुल जाते हैं
जिसकी खुशबू पाकर हम तो यूँ ही पगला जाते हैं
एक पंखुड़ी जिसकी मन को अद्भुत शांति दे जाती है
जिसपर सम्मोहित हो दुनिया निर्मल मन की हो जाती है

लेता न तनिक भी हमसे कुछ वो बस हमको ही देता है
उसको धूल मिलाकर मानव अपनी जय जय करता है
हाँ! वह दुर्बल है, कमजोर है, किन्तु बहुत ही अच्छा है
बस वो तेरा प्रेमी है प्यार उसी का सच्चा है

गर सचमुच के तुम मानव हो लालच को अस्वीकार करो
सर्वस्व लुटा दो जगती पर पूरी दुनिया से प्यार करो
यदि पढ़ना है तो पढो पुष्प से जो तेरी ख़ातिर जीता है
तुम पर सब न्यौछावर करता बिन तेरे बिलकुल रीता है

कटुता न देती तनिक चैन इसको मत अंगीकार करो
जीना है तो घुलमिल के जियो, बस प्यार करो बस प्यार करो।

Wednesday 24 May 2017

ग़ज़ल (तुम जो छत पे)

तुम जो छत पे चढ़ के आयी,रात उजली हो गयी,
इक फलक पे चाँद दो-दो हाय तौबा मच गयी।

श्रृंगार सारे चल पड़े, चेहरा तुम्हारा देखने,
और रति ने भी शरम से मौन साधा, छुप गयी।

जिसने भी देखा तुम्हें, बस देखता ही रह गया
पलकें झपकना भूल कर सबकी निगाहें थम गयी।

इक तमन्ना ही बची मोहित तुम्हारे दिल में अब
देखे तुम्हारे ख्वाब वो भी, आँखों में जो बस गयी।

Tuesday 23 May 2017

गीत प्यार के गाते हैं

अपनी पीड़ा गान बनाकर
         मुश्किल को आसान बनाकर
                  आँसू को मुस्कान बनाकर
                            हँसते और हँसाते हैं।
गीत प्यार के..............................गाते हैं।

मुझ तक जो कुछ भी पहुँचा वो मैंने सदा लुटाया,
जितना संभव हो सकता था, मैंने प्रेम जताया,
मन में अमिट विश्वास बनाकर
         अपने रुदन को हास बनाकर
                   रोज नया इतिहास बनाकर
                                 आगे बढ़ते जाते हैं।
गीत प्यार के..............................गाते हैं।

जब जी आया खेला, सोया, गाया और बतियाया,
किस्मत में सब अच्छा ही है, क्या खोया-क्या पाया?
साँसों को नवगान बनाकर
           गिरने को उत्थान बनाकर
                   'पत्थर' को 'भगवान' बनाकर
                                  सदा पूजते जाते हैं।
गीत प्यार के...............................गाते हैं।

Saturday 13 May 2017

ग़ज़ल (बातों को मेरी)

बातों को मेरी तू सुनना सम्भल के
आँखों को मेरी तू पढ़ना सम्भल के।

चोरों का सरदार लश्कर से बोला
कहीं खुल न जाये, तू ढंकना सम्भल के।

हरण चीर करने को बैठा दुशाशन
कहीं लुट न जाये, तू चलना सम्भल के।

मैं निकला जो घर से तो अम्मा ये बोली
कहीं ठग न जाये, तू रहना सम्भल के।

दुनिया में नज़रें बहुत सी हैं मोहित
कहीं लग न जाये, तू हंसना सम्भल के।

Thursday 11 May 2017

ग़ज़ल (रचता हूँ मैं ग़ज़ल)

रचता हूँ मैं ग़ज़ल तेरी मुस्कान पर
साथ बीती है जो उस हंसीं शाम पर।

जो किनारों से उठती हैं माँ यमुना के
कान्हा के बांसुरी की मधुर तान पर।

मन में झंकार उठती है सुनकर जिन्हें
तेरे गाये हुए प्यार के गान पर।

जो बने साक्ष्य अपनी मुलाकात के
पनघटों पर बने प्यार के धाम पर।

Saturday 6 May 2017

गोरी हमसे प्यार कर लो

ज़रा-सा आँखें चार कर लो
गोरी हमसे प्यार कर लो।

हर डाली से फूल चुना है
प्यार की माला रोज बुना है
राह तुम्हारी तकते तकते
प्यार बढ़ा ये कई गुना है
रहोगी मेरी पलकों पर तुम
ओ गोरी ऐतबार कर लो।

जाने कब से राह तकी है
हर पल मन में आस उठी है
प्रिये तुम्हारे इंतजार में
आँखें हज़ारों रात जगी हैं
अब आई हो अगर सामने
संग जीवन का सार कर लो।

Thursday 27 April 2017

मुक्तक

मेरे दिल की तो हर धड़कन तेरी साँसों में बसती है,
बुलाती है तुम्हें हर पल तेरा ही नाम जपती है,
मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ तुमको भूल जाऊँ पर,
तुम्हारी याद में खोकर मेरी आँखें बरसती हैं।

नज़र गर प्यार की हो तो ये धरती प्यार देती है,
जो नफरत से भरा हो दिल, सदा अंधियार देती है,
किया, देखा, सुना, जाना, मगर इतना समझ पाया,
मोहब्बत जीत देती है, तो नफरत हार देती है।

Monday 3 April 2017

राम भगवान क्यों हैं????

राम भगवान क्यों है??
दो दिन पूर्व आपसे मैंने पूछा था। मेरा उद्देश्य राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न खड़ा करना नहीं था। मेरा उद्देश्य था कि मैं उस बहाने से आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त करूँ जिससे आगे अन्य लोगों से राम को अनुशरण करने का संदेश दे सकूँ।
आइये जानते हैं कि राम भगवान क्यों हैं--
1- राम हमेशा विनम्रता के साथ रहे।
2- राम ने बिना हमेशा बड़ो का सम्मान किया।
3- राम के अंदर राजा होने का घमंड नहीं था।
4- राम जाति नहीं बल्कि कर्म और विद्वता और अनुभव के आधार पर लोगों का पद निश्चित करते थे।
5- पुष्पवाटिका में माली से फूल चुनने के लिए निवेदन किया, निषाद राज से उनके पास रहने की विनती की, केवट से नदी पार कराने की प्रार्थना की, समुद्र से रास्ता देने के लिए निवेदन किये।
6- माता पिता को हमेशा सम्मान दिया।
7- गुरुजनों की आज्ञा का पालन किया।
8- अपनी पत्नी के प्रति हमेशा वफादार रहे।
9- अपने भाइयों को, जनता को हमेशा प्रेम से रखा।
10- विरोधियों की विद्वता का सम्मान किया।
11- हमेशा न्यायप्रिय रहे, सच्चाई के लिए लड़े।
12- हमेशा सकारात्मक रहे।
13- उत्साह बरकरार रखा।
14- संयमित जीवन जिए।
और सबसे महत्वपूर्ण-
15- लोक कल्याण हेतु व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग दिया।
अतः अगर हम भी इन आदर्शों के साथ जियें तो हम भी राम हो सकते हैं, क्योंकि हमारी आत्मा ईश्वर का अंश है, हमारे शरीर का प्रत्येक कण ईश्वरमयी है। बस आवश्यकता है उसे पहचानने की। आध्यात्मिक होकर ही हम ये समझ सकते हैं।
#जय_श्री_राम
#जय_हिंद

Saturday 1 April 2017

आज प्यार आया फिर उस पर

जिसके संग रहने के सपने दिन रात बुना मैं करता था,
जिसकी बातों का मधुर गान सदा साथ मेरे चलता था,
एक काम बस मेरा बतियाना जिससे था दिनभर,
आज प्यार आया फिर उस पर......

जिसने जीवन को मेरे मृदु स्वर में सदा संजोया था,
खिले पुष्प की खुशबू को साँसों में मेरी पिरोया था,
जीवन जिसने काव्यमय किया जिसने प्यार दिया हर पल,
आज प्यार आया फिर उस पर......

Friday 31 March 2017

मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये

मुझे दिल में अपने बसा लो प्रिये
मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये।

जब से जन्मा तू ही मेरे दिल में तो है
हर रूप बस मेरा तुझसे ही है
तू सुबह मेरी, तू ही शाम है
तू काम मेरा तू आराम है
कंटीले सफर में सुमन-सी तू है
गर्मी में ठंडी पवन-सी तू है
तू मेरी उपमा, तू अनुप्रास है
तू वीरता मेरी, तू हास है
मुझको शृंगार अपना बना लो प्रिये
मुझे प्यार का रस पिला दो प्रिये।

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ

प्रिय की यादों में खोकर
जब रोने का मन होता है
छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी प्यारी प्यारी बातों का हर क्षण मेला होता है

क्या भूलूँ क्या याद करूँ बस यही झमेला होता है

मनचाहे कामों से नफरत हो जाती है

औरों की बातें झुंझलाहट दे जाती है

मायूसी घर कर जाती है

मन जस तस बहलाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी यादों का जाल सदा चौतरफा मेरे होता है

रोम रोम मेरे तन का तड़पन में उसकी रोता है

खुशियों के रंगमंच का पर्दा गिरता है

पुस्तक की पृष्ठों में चेहरा देखता है

चीख हृदय से उठती है

गीत प्यार के गाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...