तुम बिना कैसे जीवन गुजारूँगा मैं
लौट आओ प्रिये दूर जाओ न तुम।
था ये वादा कि हम साथ होंगे सदा
मान रख लो ये वादा भुलाओ न तुम।
फूल की वाटिका जैसी सद्गन्ध में
हो सनी जैसे राघव की सीता हो तुम
हो कि यमुना किनारे की वृषभानुजा
गीत वंशी मेरी, मेरी गीता हो तुम
द्वार अपने हृदय का प्रिये खोल दो
सुन लो अर्ज़ी मेरी यूँ सताओ न तुम।
रूप देखूँ तुम्हारा तो होवे सुबह
और केशों के साये में ही रात हो
ऐसी चंचल हो तुम जैसे दीपक की लौ
और कोमल छुअन जैसे जलजात हो
मेरी खुशियाँ तुम्हारी ही मुस्कान है
रो रहा हूँ कि यूँ रूठ जाओ न तुम।
(महेंद्र कुमार मिश्र 'मोहित')
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