गंगा
नदी नहीं है
जीवन है
और उसमें बहता जल
जल नहीं प्रेम है।
निकलती है गंगा
उछल कूद करती हुई
इधर से उधर दौड़ लगाती हुई
अपने बालपन में।
जैसे जैसे उम्र बढ़ती है
लोगों से परिचय बढ़ता है
लोग मिलने लगते हैं उसे।
एक दिन यूँ ही
यमुना ने अपना प्रेम न्योछावर कर दिया उसपर।
तबसे गंगा अकेली नहीं है
संग संग यमुना भी चलती है
पर देखो तो
कितना गहरा प्रेम है
यमुना ने समर्पित कर दिया अपना रूप रंग गंगा को
प्रेम की पराकाष्ठा।
तमाम मोड़ आते हैं गंगा के जीवन में
मुश्किलों में भी रास्ता बनाते हुए
विसर्प लेते हुए
अपने प्रौढ़ा अवस्था में पहुँचती है।
उसके सपने, उसके अपने
उसे तोड़ देते हैं
बिखर जाती है
कई धाराओं में
और अंततः
अपना कमाया हुआ
इकट्ठा किया हुआ
सब कुछ छोड़
विलीन हो जाती
चिर निद्रा में
शांति में।
हाँ!
गंगा नदी नहीं जीवन है।

Sunday, 12 November 2017
गंगा
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