Friday 31 March 2017

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ

प्रिय की यादों में खोकर
जब रोने का मन होता है
छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी प्यारी प्यारी बातों का हर क्षण मेला होता है

क्या भूलूँ क्या याद करूँ बस यही झमेला होता है

मनचाहे कामों से नफरत हो जाती है

औरों की बातें झुंझलाहट दे जाती है

मायूसी घर कर जाती है

मन जस तस बहलाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

उसकी यादों का जाल सदा चौतरफा मेरे होता है

रोम रोम मेरे तन का तड़पन में उसकी रोता है

खुशियों के रंगमंच का पर्दा गिरता है

पुस्तक की पृष्ठों में चेहरा देखता है

चीख हृदय से उठती है

गीत प्यार के गाता हूँ

छिप छिप अश्रु बहाता हूँ।

No comments:

Post a Comment

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...