Friday 12 January 2018

हम नौका पर बैठ

हम नौका पर बैठ चलो उस पार चलें।

अब तक जिसने धर्म न जाना
कहता है ये धर्मयुद्ध है
खा जाएगा उसको कच्चा
दिखता ऐसा क्रूर क्रुद्ध है
आये दिन अखबारों में
रहती हैं खबर विवादों की
भोली जनता तो दीवानी
रही चुनावी वादों की
जहाँ शांति का परचम लहरे
हम ऐसे दरबार चलें
हम नौका पर बैठ चलो उस पार चलें।

जहाँ बेटियाँ रहें सुरक्षित
खेलें खाएं मस्त रहें
एक दूसरे की खुशियों में
सभी जहाँ मदमस्त रहें
जहाँ नीतियाँ न्याय परक हो
सत्ता का भुजदण्ड न हो
द्वेष, ईर्ष्या, लालच, कटुता
और जहाँ पाखण्ड न हो
हृदय खोलकर स्वागत होवे
आओ ऐसे द्वार चलें
हम नौका पर बैठ चलो उस पार चलें।

जहाँ के बच्चे भीख नहीं
शिक्षा के लिए समर्पित हों
संग्रह से सब दूर रहें
बस दान पुण्य को अर्पित हों
किसी हृदय की पीड़ा दूजे
की आंखों में छलक उठे
और किसी की खुशियों में
जन मन के नैना चमक उठें
जहाँ न कोई बंटवारा हो
हम ऐसे संसार चलें
हम नौका पर बैठ चलो उस पार चलें।

                  -महेंद्र कुमार मिश्र 'मोहित'

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