Saturday, 28 April 2018

कैसे प्यास बुझाऊँ मैं ?

पनघट पनघट काँटे बिखरे
कैसे प्यास बुझाऊँ में ?

जहाँ कहीं मैं नजर घुमाता
गूँगे, अंधे, बहरे दिखते
काली करतूतें, जुबान,दिल
कालिख पोते चेहरे दिखते

काली सड़कों-सन्नाटों में
कैसे मंजिल पाऊँ मैं ?

कलरव, सूनेपन में बदला
सूरज आज नहीं जागा
सिंहासन ने मौन धरा पर
मन का पाप नहीं भागा

उपवासी मुद्रा लालचमय
कैसे खुशी मनाऊँ मैं ?

मंदिर के परिसर में देखो
गौरैया के पंख कट रहे
उन्हें बचाए कौन यहाँ तो
आपस मे इंसान बँट रहे

लुटती मर्यादा भारत की
कैसे चुप हो जाऊँ मैं ?

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