Tuesday 27 March 2018

तुम संग जीना चाहती हूँ मैं

नहीं हूँ मैं तुम्हारे पास
याद भी न करोगी मुझको
भुला दोगी
वो सारे वादे?
वो सारी बातें?
एक बात पूछूँ
सच कहना
अलग कर पाओगी ज़िन्दगी के ये पन्ने खुद से
कैसे मिटाओगी
दरख्तों पर खींचे गए अपने नाम।

मेरा क्या है?
जी लूँगा
तुम्हारी यादों में
अकेले
चुपचाप।

यादें तुम्हारी मुस्कुराहट की
यादें तुम्हारे श्रृंगार की
यादें तुम्हारे बार-बार
पलकें उठाकर गिराने की।

दर्द होता है दिल में
कराह उठता हूँ अक्सर।

सच कहूँ
आदत हो गयी है नम आँखों की
अकेले..गुमशुम..चुपचाप।
तुमको तलाशता हूँ तस्वीरों में
यूँ लगता है
जैसे अभी आओगी
और थाम कर मेरा हाथ
मृदु स्वर में
हृदय की गहराई से
कुछ सोच कर
फिर कहोगी
"तुम संग जीना चाहती हूँ मैं"

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