Tuesday 27 March 2018

प्रसन्नता

अखबार के पन्ने पलटते हुए ज्ञात हुआ
आज ' विश्व प्रसन्नता दिवस' है।
हम पैसों की तरफ बढ़ते बढ़ते
ये भूल गए
कि खुशियाँ क्या होती हैं?
डिजिटल दुनिया है
और ये दुनिया इतनी शानदार है
कि सामने बैठे व्यक्ति से बात करना तो दूर
हम उसे देखते भी नहीं।
मज़े की बात तो ये है
कि वो भी हमें नहीं देखता
गर्दन झुकी
उंगलियाँ सक्रिय
और जल्दी जल्दी कुछ लिखकर
हर बात में प्रतिक्रिया देने के जल्दी।

और 'भाषाओं' का स्तर तो इतना शानदार
कि पता ही न चले
कि किस समाज मे रहते हैं।
अरे!
माफ करना
समाज के नहीं
डिजिटल दुनिया के वासी हैं।

विकास कर रहे हैं
पैसों की तरफ
भागते भागते
जवानी में बुढ़ापा
और बच्चे में हिंसात्मक रवैया आना
ये विकास की निशानी है।

और फिर घोर चिंता
दुःख
आंसू
और
पंचतत्व में विखंडन।

हर दिन दुःख की तरह अग्रसर होते लोग
खुश नहीं रह सकते तो क्या हुआ
एक दिन ही सही
खुशी के बारे में अखबारों में तो पढ़ ही सकते हैं
और जान सकते हैं
कि इस पृथ्वी का
सबसे अविकसित काम
'प्रसन्न' होना था।

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