आज अखबार का पहला पन्ना देखा
फिर वही जाना पहचाना शब्द दिखा
'बलात्कार'
पढ़ने लगा
दहल गया
विचलित हो गया।
कैसे कर देते हैं सब?
कहाँ गयीं सम्वेदना?
कहते हैं
विवेकानंद ने विवाह की प्रस्ताविका को माँ मान लिया था।
सोचता हूँ
क्या वही देश है?
जहाँ वो थे
या फिर उसी नाम के किसी और जगह पर हूँ?
लगता यही है
मुझे भ्रम है भारत मे होने का
कब टूटेगा
नहीं पता
क्योंकि कन्या सुरक्षित नहीं होगी
क्योंकि मर्द, और उनकी मर्दानगी
मानवीयता से ऊपर है
क्योंकि ऊपर है उनका अहम
कि वो मर्द हैं।
और उससे ज्यादा
चाहिए शरीर का सुख
फिर बेटी हो या बहन
या कोई और
बस स्त्री हो
उम्र कुछ भी हो
लिबास कुछ भी हो
धर्म कुछ भी हो
और तो और
इनकी जाति का भी भेद खत्म हो जाता
अगर स्त्री सुंदर हो
त्याग के देश में
प्रीति के देश में
विलास
नहीं, ये भारत नहीं।
Tuesday 27 March 2018
बलात्कार
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