Tuesday, 27 March 2018

कुछ यादें देकर जाता हूँ

मैं आज तुम्हारी झोली में कुछ यादें देकर जाता हूँ।

आँखों में देख देखकर तुम जो अपनी आँख चुराती थी
अपनी मीठी ध्वनि से मेरी सुबहें खुशरंग बनाती थी
हम दूर दूर होकर के भी हमराह बने संग चलते थे
एक दूजे से खट्टी मीठी कुछ बातें साझा करते थे
उन बातों का सम्पूर्ण सार इकसाथ बांधकर जाता हूँ
मैं आज तुम्हारी झोली में कुछ यादें देकर जाता हूँ।

लगता था खुश हो नाच रहे जगमग करते नभ के तारे
चाँद पुरोहित बनकर आया, स्वागत में थे ग्रह सारे
दीपक के लौ सी चंचलता स्नेह मेरा पा बढ़ती थी
चाँदनी हमारी खुशियों पर आशीष निछावर करती थी।
स्नेह, चाँदनी रात, और वो दीप सौंपकर जाता हूँ
मैं आज तुम्हारी झोली में कुछ यादें देकर जाता हूँ।

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