Tuesday 27 March 2018

जीवन खुद पर निर्भर है

दिन और रात सभी को एक बराबर मिलता है
किसको कितना जीना है यह उस पर निर्भर है।

एक नदी पर्वत से निकली
इधर उधर से राह खोजते
इक दिन सागर तक पहुँचेगी
सागर तक जाने से पहले
कितने घाटों से हो होकर
लाखों प्यासों तक पहुँचेगी
नदी दौड़ती रहती सबकी प्यास बुझाने को
किसको कितना पीना है यह उस पर निर्भर है।

सबने सपने देखे हैं पर
एक सुबह के इंतजार में
बहुतों के सपने रीते हैं
कण मात्र नहीं सूरज का पर
देखो जुगनू की मेहनत ने
जाने कितने मन जीते हैं
किसने कितने प्रतिशत मेहनत झोंक खुशी पाई
मधु का कौन महीना है यह उस पर निर्भर है।

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