Tuesday 27 March 2018

बचपन जाने किस ओर गया

बचपन जाने किस ओर गया।

माँ उल्लसित हो जाती थी जिनकी प्यारी सी बातों से
अब हत्याएं हो जाती हैं नन्हें नन्हें उन हाथों से
माँ का प्यार भूल करके बच्चा जाने किस छोर गया
बचपन जाने किस ओर गया।

आकर आभासी दुनिया में रिश्तों की मर्यादा भूले
भूले हैं प्रकृति प्रेम और भूले हैं सावन के झूले
भूल भुलैया का चक्कर तो ले पतंग की डोर गया
बचपन जाने किस ओर गया।

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