Tuesday 27 March 2018

जीवन की सार्थकता

यहाँ
तुमसे सैकड़ों किलोमीटर दूर
छात्रावास में
अकेले बैठकर
दुआएँ कर रहा हूँ
तुम्हारे लिए
कि तुम सफल हो
हर उस काम में
जो तुम करती हो।
हमेशा तुम्हारे चेहरे पर
वही मनमोहक मुस्कान हो
जो तब थी
जब हम मिले थे।
तुम वैसे ही खुश रहो
जैसे तब होती हो
जब मैं तुम्हारी हथेली को
रख लेता हूँ
अपने हथेलियों के बीच।

जब भी तुम्हें लगे
कि अकेली हो तुम
तो रसोई में जाकर
एक अच्छी सी चाय बनाना
वैसी, जैसी मुझे पसन्द है।
और धीरे से लगाना उन्हें अपने होठों से।
हौले से बंद करना अपनी आँखें
फिर
मन को थोड़ा स्थिर करके
केंद्रित करना
चाय की मिठास
और कप की दीवारों के
गर्माहट भरे स्नेहिल स्पर्श पर।

ठीक इसी समय
तुम महसूस करोगी
कि
मैं पास हूँ तुम्हारे
बिल्कुल पास
क्योंकि जहाँ तुम हो
वहीं मैं हूँ
क्योंकि तुम्हारे पास होना
जीवन की सार्थकता है।

              -मोहित

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