Thursday 9 August 2018

लैंगिक सद्भावना में कमी : कारण व निवारण

लैंगिक सद्भावना में कमी : कारण व निवारण

अखबारों में आये दिन आ रही छेड़छाड़ और बलात्कार की खबरों से आहत हूँ। इनको रोकने के लिए कितने भी प्रयास किये जायें, वह कम ही साबित हो रहे हैं। मैं अक्सर इस विषय पर मंथन करता हूँ, कि यह सब क्यों होता है? कानून क्यों बेअसर हो जाते हैं? अपराधियों को उसका डर क्यों नहीं होता?
बहुत से दिन और रातें इसी पर विचार करते हुए आज मैं इसके मूलभूत कारणों पर पहुँचा हूँ। आइये देखते हैं-

1- फिल्में और प्रचार- फिल्मों में लड़कियों को एक ऑब्जेक्ट की तरह दिखाया जाता है, जिसमें कोई लड़का बस उसे हासिल करने की कोशिश करता रहता है। वहीं, जो खलनायक के रूप में होते हैं, वह भी नायक को परेशान करने के लिए उस लड़की को ही माध्यम बनाते हैं और उसे परेशान करते हैं।। प्रचारों में कोई भी सामग्री बेचनी हो, बिना स्त्रियों के अंग प्रदर्शन के वह नहीं होता। इन सामग्रियों को TV पर देखने वालों की मानसिकता पर विपरीत असर होता है।

2- अश्लील पत्रिकाएँ- बहुत सी पत्रिकाओं में अश्लील कहानियाँ, और लेख प्रकाशित होते हैं, जिन्हें बहुत से पाठक पढ़ते हैं। यह कहानियाँ भी उनकी मानसिकता पर असर डालती हैं और इन घटनाओं को जन्म देती हैं।

3- शिक्षा व्यवस्था- आज की शिक्षा व्यवस्था महज एक दर्जे से दूसरे दर्जे में पहुँचा देने भर की है। उनमें संस्कार के नाम पर कुछ भी नहीं है। आज के बच्चों के पाठ्यक्रम में ऐसी चीजें नहीं शामिल हैं, जो उन्हें सभी के प्रति समान भाव रखना सिखाएं। शिक्षा व्यवस्था महज परीक्षाओं और नौकरियों की ओर उन्मुख हैं।

4- इंटनरेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्रियाँ- आज सैकड़ो वेबसाइट पर वीडियो, ऑडियो, व लिखित में अश्लील सामग्रियाँ उपलब्ध हैं, जिन तक सामान्य इंटरनेट उपभोक्ता की पहुँच है। साथ ही अन्य तमाम वेबसाइटों पर उपलब्ध प्रचार भी अमूमन अश्लील सामग्रियों के होते हैं, क्योंकि व्यक्ति जिस वेबसाइट या लिंक को खोलता है, उसी से जुड़ी हुई चीजें उसे प्रचार में मिलती हैं।

इन अमानवीय घटनाओं के निवारण हेतु सबसे आवश्यक है उन तत्वों को रोकना जहाँ से ऐसे कुत्सित विचार प्रवाहित होते हैं। इस सम्बंध में कुछ प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं-

1- ऐसी फिल्मों और प्रचार सामग्रियों पर रोक लगाई जाए, जिनमें स्त्रियों को महज ऑब्जेक्ट के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही ऐसा करने वाले निर्देशक निर्माता को दंडित करने का भी प्रावधान हो।

2- शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन कर हर विद्यालय में एक काउंसलर नियुक्त किया जाए, जो बच्चों को उचित शिक्षा दे। साथ ही पाठ्यक्रम में ऐसे साहित्य सम्मिलित किये जायें, जो हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनने, व सभी के प्रति सद्भाव रखने की ओर प्रेरित करें।

3- ऐसी सभी वेबसाइटों को ब्लॉक किया जाए, जिन पर अश्लील सामग्रियाँ उपलब्ध हों।

4- अश्लील सामग्रियाँ परोसने वाली हर पत्रिका को बैन किया जाए, व उन्हें दण्डित किया जाए।

 
मेरा यकीन है, जब यह मूलभूत परिवर्तन किए जाएंगे, तो ऐसी घटनाओं में क्रांतिकारी कमी देखने को मिलेगी। ऐसी शिक्षा व्यवस्था, और समाज से निकलकर ही व्यक्ति कानून व्यवस्था में भी जाता है। जब कोई पीड़िता न्याय की गुहार लिए आती है, तो वो भी ऐसे 'मौके' छोड़ना नहीं चाहते, और शब्दों से ही उसकी इज्जत तार तार करने में लगे होते हैं।

मेरा मानना है कि जब समाज से अश्लील सामग्रियों का लोप होगा, और उनकी जगह नेक विचार, सामाजिक सद्भाव, लैंगिक सद्भाव व समता के विचार प्रेषित किये जायेंगे, तभी हम वांछित परिणाम तक पहुँच सकते हैं।

आज के लोग यह भूल चुके हैं कि स्त्री और पुरुष मिलकर ही किसी समाज का निर्माण करते हैं। वो दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। पुरुष यह मान बैठा है कि वह अधिक शक्तिशाली है, और इसी वजह से ऐसी अपने अहंकार को चोट पहुँचते ही वह ऐसी घटनाओं को अंजाम देने लग जाता है।
हमें सही शिक्षा व्यवस्था को आवश्यकता है, साथ ही आवश्यकता यह भी है, कि आज की पीढ़ी को शिव के 'अर्धनारीश्वर' होने, और पत्नी के 'वामा' व 'सहधर्मचारिणी' होने का सही अर्थ समझाया जाए। इससे पुरुष के शक्तिशाली होने के अहंकार को तोड़ने में न केवल मदद मिलेगी अपितु स्त्रियों के प्रति उनमें अच्छे विचारों का भी समावेश होगा।

4 comments:

  1. Actually right...
    All facts r reasonable nd logical... Appreciate to ur thinking ..
    And yes ,all these ways r d best way to stop such evils. .

    ReplyDelete
  2. अच्छे ढंग से कही गयी,विचारणीय बात।।
    जरुरी भी है यार।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर

    ReplyDelete

प्रेम-पत्र

प्रिये! तुम कहाँ हो? कैसी हो? इन सबके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। सिर्फ कल्पनायें कर सकता हूँ, कि जहाँ हो, कुशल से हो। बीते एक साल में जीवन...