Saturday 20 October 2018

ग़ज़ल (गुलाब)

मेरी बगिया में खिला है आज इक प्यारा गुलाब
जिंदगी पाकर खुशी से खिलखिलाता सा गुलाब

मुश्किलों के बाद हैं खुशियां यही सिखला रहा
कंटकों के साथ रहकर नित्य मुस्काता गुलाब

माँ-पिता से दूर बच्चे का नहीं कोई वजूद
देख लो बिखरा पड़ा है डाल से टूटा गुलाब

जातियों के, मजहबों के, बंधनो को तोड़कर
प्रेम जीतेगा यकीनन, जीत की आशा गुलाब

सामना करते हुए रस्ते में बिखरे शूल का
आगे जो बढ़ता वही है अंत में पाता गुलाब

प्रेम है जीवन इसी जीवन से है अस्तित्व भी
प्रेम सबसे पुण्य पथ है प्रेम की गीता गुलाब

कशमकश ऐसी कि 'मोहित' सोचते हैं क्या कहें
है गुलाबों सा वो चेहरा या कि चेहरे सा गुलाब

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